स्वार्थ के त्यागी संत ही सच्चे संत होते हैं- आचार्य विजयराज

नोखा टाइम्स न्यूज, नोखा।। अच्छाई का अहंकार बुराई की जड़ है। अच्छे काम करो मगर अच्छाई का अहंकार मत करो यह अहंकार हि पतन का कारण बनता है। स्वार्थ और अहंकार का त्याग करने से साधना में साधुता आती है। ये विचार जोरावरपुरा स्थित डागा अराधना केन्द्र में आयोजित धर्म सभा में आचार्य विजयराज महाराज ने कहे। उन्होंने कहा कि अहंकार किसी भी तरह का हो बुरा होता है। अभिमान के साथ सेवा नहीं होती उसमें सेवा का प्रदर्शन हो सकता है।सच्ची सेवा निरभिमानी व्यक्ति ही कर सकता है। निरभिमानी में विनम्रता होती है, ये उसे विवेकशील बनाती है। विवेक ही समय और अवसर कि पहचान देता है। जिस सम्प्रदाय, मत, सिद्धांत व ग्रंथ में अपने स्वार्थ व अभिमान के त्याग कि प्रमुखता रहती है वो महान होते हैं। हकीकत में व्यक्ति ग्रंथों को पढ़ता तो है मगर स्वार्थ व अभिमान के त्याग कि बात को भूल जाता है जिसे यह याद रहती है वो अच्छाई का अभिमान नही करता।nआचार्य श्री ने कहा कि स्वार्थ व अभिमान के त्याग को सबसे बड़ा त्याग माना गया है। इसको त्याग कर सची साधुता को पाया जा सकता है। दुनिया स्वार्थ कि धुरी पर घुम रही है, इससे अभिमान पैदा होता है और स्वार्थ कि पूर्ति न होने पर आवेश पैदा होता है। दोनो ही खतरनाक होते हैं। इसलिए स्वार्थ के त्यागी संत ही सच्चे संत होते हैं। स्वार्थ कभी किसी के पूरे नही होते, स्वार्थ के चेहरे भी बदलते रहते हैं। स्वार्थ त्याग कि भावना उत्तम होती है। स्वार्थ व त्याग कि भावना से मनुष्य श्रेष्ठ बन सकता है। ज्ञान हमें मुक्ति देता है लेकिन ज्ञान का अभिमान दुर्गति की और ले जाता है। ज्ञान के साथ विनम्रता बढ़े तो ज्ञान मुक्ति दाता बन जाता है। सत्संग से ज्ञान प्राप्त होता है इसलिए शुद्ध भावों से सत्संग करते रहना चाहिए। मगनमल लुनावत ने बताया कि सोमवार को नोखा जोरावरपुरा के इस आवास का अंतिम प्रवचन हुआ।31मई को सुर्योदय के साथ ही आचार्य श्री सभी संतों के साथ नोखागांव के लिए विहार करेंगे। नोखागांव में समता भवन में व्याख्यान का आयोजन किया है। बच्छराज लूणावत ने बताया कि इस अल्प प्रवास में भी सभी श्रावक श्राविकाओं ने धर्म लाभ मे बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया व गुरु देव से विनती कि कि नोखा क्षेत्र में जल्दी वापस दर्शन देने आना है।

admin

Related articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page