24 मार्च की रात को होलिका दहन का शुभ मुहूर्त: नोखा में चार जगह होंगे विशेष होलिका दहन; चार शुभ योग बन रहे, दो दिन रहेगी पूर्णिमा तिथि

24 मार्च की रात को होलिका दहन का शुभ मुहूर्त: नोखा में चार जगह होंगे विशेष होलिका दहन; चार शुभ योग बन रहे, दो दिन रहेगी पूर्णिमा तिथि

नोखा टाइम्स न्यूज़, नोखा।। होली का पर्व इस बार 24 मार्च को है और इसके अगले दिन रंगोत्सव यानी धुलंडी मनाई जाएगी। यह पर्व बसंत ऋतु की समाप्ति और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। होली पर इस बार चंद्र ग्रहण भी है, लेकिन भारत में दिखाई नहीं देने के कारण इसका असर नहीं रहेगा।

इस बार भद्रा का साया होने से प्रदोष काल के बीच में ही 1 घंटा 19 मिनट का समय होलिका दहन के लिए शुभ होगा। भद्रा के बाद महानिशिथ काल में होलिका दहन सर्वोत्तम रहेगा। 25 मार्च को धुलंडी पर्व मनाया जाएगा।

शहर में इन प्रमुख स्थानों पर होगा होलिका दहन

1. कटला चौक

2. तिरुपति नगर

3. हरिराम जी मन्दिर के पास

4. पिम्पली चौक

कृष्ण मंदिर के पंडित पुरुषोत्तम महाराज ने बताया पूर्णिमा तिथि 24 मार्च को सुबह 9.56 बजे से शुरू होगी। इसी के साथ भद्रा भी शुरू होकर रात 11.14 बजे तक रहेगी। इसके बाद पूर्णिमा तिथि 25 मार्च को दोपहर 12.30 बजे तक है। 24 मार्च को प्रदोष काल में शाम 6.34 से 7.53 तक भद्रापुच्छ में 1 घंटे 19 मिनट में होलिका दहन किया जा सकेगा। हालांकि भद्रा के बाद रात 11.14 के बाद 12.29 बजे तक अर्थात् 1 घंटे 15 मिनट का समय होलिका दहन के लिए श्रेष्ठ रहेगा।

ये चार शुभ योग रहेंगे इस दिन

इस बार होलिका पर्व पर चार शुभ योग बन रहे हैं, जिसमें वृद्धि योग रात्रि 09:30 तक है। ध्रुव योग 24 मार्च को पूरे दिन रहेगा। इस दिन उत्तरा फाल्गुनी और हस्त नक्षत्र का भी निर्माण है। उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र 10:40 बजे तक रहेगा और इसके बाद हस्त नक्षत्र शुरू हो जाएगा। ज्योतिष शास्त्र में इन सभी को पूजा-पाठ के लिए श्रेष्ठ समय बताया गया है।

पहले भगवान नृसिंह और आखिरी में होलिका पूजा

सबसे पहले भगवान नृसिंह का ध्यान कर के प्रणाम करना चाहिए। फिर चंदन, अक्षत और फूल सहित पूजन सामग्री चढ़ाएं। फिर प्रह्लाद का स्मरण करते हुए नमस्कार करें और पूजन सामग्री चढ़ाएं। इसके बाद होली की पूजा करें। पूजा करते समय पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह होना चाहिए।

भद्रा का अर्थ मंगल करने वाला, लेकिन शुभ कार्य निषेध

हर बार होलिका का पूजन एक या दो साल के अंतराल में भद्रा की उपस्थिति में आता है। यह भी लगभग स्पष्ट है की होलिका का पूजन पर भद्रा का दोष कितना मान्य होता है या नहीं होता है।

ज्योतिष शास्त्र में भद्रा का वास चंद्रमा के राशि संचरण के आधार पर बताया गया है। यदि भद्रा कन्या तुला धनु राशि के चंद्रमा की साक्षी में आती है तो वह भद्रा पाताल में वास करती है और पाताल में वास करने वाली भद्रा धन-धान्य और प्रगति को देने वाली मानी गई है। इस दृष्टि से इस भद्रा की उपस्थिति शुभ मंगल कारी मानी गई है।

होलिका और प्रह्लाद की कथा

होली के संबंध में सभी अधिक प्रह्लाद और होलिका की कथा प्रचलित है। हिरण्य कश्यप का पुत्र था प्रह्लाद, जो कि विष्णु जी का भक्त था। इस बात हिरण्य कश्यप बहुत क्रोधित और प्रह्लाद को मारना चाहता था। असुर हिरण्य कश्यप की बहुत कोशिशों के बाद भी प्रह्लाद हर बार विष्णु कृपा की वजह से बच जाता था। तब असुर राज की होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई थी। होलिका को आग में न जलना का वरदान मिला हुआ था, लेकिन विष्णु जी की कृपा से होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया।

बसंत ऋतु की होती है शुरुआत

होली के समय से बंसत ऋतु की शुरू होती है। बसंत ऋतु के स्वागत में ये पर्व मनाया जाता है। एक अन्य मान्यता है कि कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग करने के लिए बसंत ऋतु को प्रकट किया था। शिव जी कामदेव के इस काम की वजह से बहुत क्रोधित हो गए थे। भगवान ने जैसे ही अपना तीसरा नेत्र खोला, कामदेव भस्म हो गए। ये फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि की ही घटना मानी गई है।

नई फसल पकने का समय

ये नई फसल पकने का समय है। भारत में फसल आने पर उत्सव मनाने की परंपरा है। होली के समय खासतौर पर गेहूं की फसल पक जाती है। ये फसल पकने की खुशी में होली मनाने की परंपरा है। किसान जलती हुई होली में नई फसल का कुछ भाग अर्पित करते हैं और खुशियां मनाते हैं।

भारतीय संस्कृति के मुताबिक हमें जो भी वस्तु प्राप्त होती है, उसमें से कुछ भाग भगवान को अर्पित किया जाता है। इसी वजह से नई फसल आने पर जलती हुई होली में अन्न अर्पित किया जाता है। जलती हुई होली को यज्ञ की तरह माना जाता है।

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