बकरी चराने वालों की बेटियां बनीं नेशनल फुटबॉल चैंपियनः शॉर्ट्स पहना तो विरोध हुआ, सभी 12 खिलाड़ी राजस्थान के एक ही गांव की
नोखा टाइम्स न्यूज़,नोखा।। राजस्थान के बीकानेर जिले का एक कस्बा नोखा। यहां से 45 किलोमीटर दूर है ढींगसरी गांव। इसी गांव की बेटियों की बदौलत राजस्थान को 60 साल बाद अंडर-17 गर्ल्स नेशनल फुटबॉल चैंपियनशिप में ट्रॉफी मिली है। फाइनल खेलने वाली टीम की 12 खिलाड़ी इसी गांव (ढींगसरी) की हैं। इन बेटियों में किसी के पिता मजदूर हैं तो किसी के पिता बकरियां चराते हैं। कुछ खिलाड़ी के पेरेंट्स खेती-किसानी करते हैं। बेहद ही साधारण परिवार से आने वाली इन बेटियों के लिए इतिहास रचना आसान नहीं था।
आज पूरे गांव को बेटियों पर गर्व है हमारी मुलाकात गांव के अनुरोध सिंह राजवी से हुई। उन्होंने बताया- गांव में ये जुनून जगाने वाले फुटबॉल प्लेयर विक्रमसिंह राजवी हैं। आज से पांच-छह साल पहले तो उन्हें यहां खिलाड़ी भी नहीं मिले थे।खेलने के लिए उन्होंने लड़कियों को लड़कों वाली ड्रेस दी तो गांव वाले विरोध में उतर आए। फिर उन्होंने सबकी सोच बदली और आज पूरा गांव बेटियों पर गर्व कर रहा है।
बकरी चराने वाले बच्चों को बनाया प्लेयर
विक्रम सिंह कहते हैं- शुरुआत में गांव के परिवारों से मिला। बच्चों और युवाओं से मिला तो फुटबॉल सीखने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। बावजूद इसके मैं पीछे नहीं हटा। गांव में 18 बीघा जमीन खरीदकर अपने पिता मगन सिंह राजवी के नाम पर एकेडमी शुरू की। कुछ दिनों तक मुझे एक भी प्लेयर नहीं मिला। इसके बाद मैंने गांव में बकरियां चराने वाले बच्चों को फुटबॉल सिखाने का फैसला किया। गांव से मैं बाइक पर कुछ बच्चों को लेकर मैदान पर लाता, उन्हें फुटबॉल की प्रैक्टिस करवाता था। आधे बच्चे तो दूसरे दिन आते ही नहीं थे, जबकि मैं सभी को फुटबॉल फ्री में सिखा रहा था। फिर धीरे-धीरे बच्चों का इस फुटबाल की ओर रुचि बढ़ी तो वो आने लगे।
सभी खिलाड़ी बेहद साधारण परिवार से हैं टीम की प्लेयर भावना कंवर के पिता रघुवीरसिंह खेती करते हैं। वे बताते हैं- आज जो भी जीत मिली है, उसके लिए कोच साहब को ही धन्यवाद है।
टीम की उप कप्तान हंसा कंवर के पिता अशोक सिंह का एक साल पहले निधन हो चुका है। परिवार की आय खेती-बाड़ी पर ही निर्भर है। गोलकीपर मुन्नी भांभू के पिता भोमाराम भांभू व्यापार करते हैं। प्लेयर मंजू कंवर के पिता बकरियां चराते हैं। इसी प्रकार टीम की बाकी प्लेयर भी साधारण परिवारों से हैं।
सरपंच बोले- इस उपलब्धि का पूरा श्रेय कोच को जाता है
गांव के सरपंच धर्मबीर सिंह राजवी ने कहा- पहली बार हमारे गांव में यह गौरवमयी और ऐतिहासिक क्षण आया है। इसका पूरा क्रेडिट सिर्फ विक्रम सिंह राजवी को जाता है, जिन्होंने 3-4 साल पहले हमारे गांव के बच्चों को ट्रेनिंग देना शुरू किया और आज इस मुकाम पर पहुंचाया। उनके इस प्रयास में ग्राम पंचायत की ओर से जो भी मदद की जरूरत होती है, हमारी ओर से दी जाती है।